डिग्री vs स्किल: जानिए कैसे व्यावहारिक शिक्षा और इंडस्ट्री-रेडी स्किल्स भर सकते हैं भारत की रोजगार खाई।
डिग्री vs स्किल: नौकरी के बाजार में किसकी जीत?
भारत आज एक नए संकट से जूझ रहा है। हर साल लाखों ग्रेजुएट्स डिग्री लेकर निकलते हैं, मगर IT, AI, डेटा साइंस जैसे क्षेत्रों में कुशल प्रोफेशनल्स की कमी बनी हुई है। एक चौंकाने वाली रिपोर्ट के मुताबिक, 80% से ज्यादा भारतीय इंजीनियर ‘नॉलेज इकोनॉमी’ के लिए अनफिट हैं। सवाल यही है कि डिग्री और नौकरी के बीच यह खाई क्यों बढ़ती जा रही है? जवाब छिपा है हमारी शिक्षा प्रणाली की किताबी चक्कर में।
रट्टा मारो, परीक्षा पास करो: पुराने सिस्टम की फेलियर कहानी
भारत की शिक्षा व्यवस्था आज भी उसी पुराने ढर्रे पर चल रही है जहां थ्योरी रटना और परीक्षा में अच्छे नंबर लाना ही सफलता की कसौटी है। मगर आज का दौर टेक्नोलॉजी और प्रैक्टिकल स्किल्स का है। क्लाउड कंप्यूटिंग, साइबर सिक्योरिटी, AI जैसे फील्ड्स में कंपनियों को ऐसे प्रोफेशनल्स चाहिए जो रियल-वर्ल्ड प्रोजेक्ट्स पर काम कर सकें, न कि सिर्फ किताबी ज्ञान से लैस हों। नतीजा? लाखों युवा बेरोजगार, और कंपनियों को सही टैलेंट नहीं मिल पा रहा।
स्किल्स-फर्स्ट एजुकेशन: नए भारत की जरूरत
इस संकट का समाधान एक ही है: “लर्निंग बाय डूइंग” यानी हाथों-हाथ सीखने वाली शिक्षा। आज की जरूरत है ऐसे करिकुलम की जो:
- इंडस्ट्री की डिमांड के अनुसार डिजाइन किए गए हों।
- स्टूडेंट्स को पहले साल से ही रियल-वर्ल्ड प्रोजेक्ट्स पर काम करने का मौका दें।
- AI, ब्लॉकचेन, DevOps जैसी नई टेक्नोलॉजीज सिखाएं।
इस दिशा में स्केलर स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी (SST) जैसे संस्थान मिसाल कायम कर रहे हैं। यहां पढ़ाई का तरीका ही अलग है:
- फर्स्ट ईयर से इंटर्नशिप: कॉलेज के पहले साल में ही स्टूडेंट्स Google, Microsoft जैसी कंपनियों में प्रैक्टिकल एक्सपोजर पाते हैं।
- इंडस्ट्री एक्सपर्ट्स का मार्गदर्शन: फेसबुक, Amazon जैसी टेक दिग्गज कंपनियों के एक्सपर्ट्स सीधे मेंटरशिप देते हैं।
- एडवांस्ड स्पेशलाइजेशन: थर्ड ईयर में स्टूडेंट्स AI, ब्लॉकचेन जैसे डोमेन्स में विशेषज्ञता हासिल करते हैं।
कैसे बदलेगा भारत का भविष्य? स्किल-बेस्ड एजुकेशन के 3 बड़े फायदे
- बेरोजगारी घटेगी: जब स्टूडेंट्स कोर्स खत्म करते ही जॉब-रेडी होंगे, तो कंपनियों और कैंडिडेट्स के बीच का गैप अपने आप भरेगा।
- इनोवेशन को बढ़ावा: प्रैक्टिकल प्रोजेक्ट्स और क्रिटिकल थिंकिंग से युवा नए स्टार्टअप्स लॉन्च करेंगे, जो भारत को ग्लोबल टेक हब बनाएंगे।
- ग्लोबल कॉम्पिटिशन में ताकत: आईआईटी और एनआईटी के स्टूडेंट्स अब सिर्फ विदेशी कंपनियों में जॉब्स के लिए ही नहीं, बल्कि गूगल, माइक्रोसॉफ्ट जैसी कंपनियों में लीडरशिप के लिए तैयार होंगे।
गांव-गांव तक पहुंचे स्किल डेवलपमेंट की बयार
इस बदलाव को सभी स्तरों पर लागू करने के लिए जरूरी है:
- सरकारी पहल: स्किल-बेस्ड कोर्सेज को प्रोत्साहन देने के लिए फंडिंग और पॉलिसी बनाना।
- एडटेक कंपनियों की भागीदारी: ग्रामीण इलाकों में ऑनलाइन प्लेटफॉर्म्स के जरिए हाई-टेक एजुकेशन पहुंचाना।
- कॉर्पोरेट जगत की जिम्मेदारी: कंपनियों को अपनी ट्रेनिंग प्रोग्राम्स एजुकेशनल इंस्टीट्यूट्स के साथ जोड़ने होंगे।
निष्कर्ष: अब समय है एक्शन लेने का
आज भारत के पास दुनिया का सबसे युवा ताकतवर वर्कफोर्स है। मगर इस पोटेंशियल को रोजगार में बदलने के लिए शिक्षा को रटने के बजाय ‘करके सीखने’ वाला मॉडल अपनाना होगा। स्केलर स्कूल ऑफ टेक्नोलॉजी जैसे संस्थान इसकी शुरुआत हैं। अगर हमने अभी नहीं सुधारा, तो AI और ग्लोबलाइजेशन के इस दौर में भारत पीछे रह जाएगा। फैसला हमारे हाथ में है: डिग्री की पुरानी परिभाषा को बदलें, या नौकरियों के संकट में और डूबें।
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